#Green house effect
सूर्य से निकलनें वाली सौर विकिरण जब प्रथ्वी पर गिरती हैं,तो उसकी कुछ मात्रा प्रथ्वी के वायुमंड़ल द्धारा रोक ली जाती हैं.जिससे वायुमंड़ल गर्म होकर प्रथ्वी पर स्थित जीवधारियों के अनूकूल बना रहता हैं.यह स्थिति ग्रीन हाऊस प्रभाव कहलाती हैं.
आदर्श ग्रीन हाऊस प्रभाव में विकिरण के 100% भाग में से 35% भाग बाहरी वातावरण द्धारा परावर्तित होकर अंतरिक्ष में विलीन हो जाता हैं.17% भाग प्रथ्वी की सतह से परावर्तित हो जाता हैं.तथा 48% भाग वायुमंड़ल में विकरित हो जाता हैं.यह विकरित विकिरण प्रथ्वी की सतह और गैसों द्धारा अवशोषित होकर प्रथ्वी के वातावरण को गर्म रखती हैं.
# ग्रीन हाऊस प्रभाव इतना चर्चा में क्यों हैं? :::
प्रथ्वी पर ग्रीन हाऊस प्रभाव के लियें अनेक गैसें जिम्मेदार हैं,जैसें कार्बन डाइ आँक्साइड़ (Co2),मीथेन,नाइट्रस आँक्साइड़ और क्लोरोफ्लोरो कार्बन (CFCs).
ये गैसें ऊष्मा को रोककर प्रथ्वी के वातावरण को गर्म बनाती हैं.कुल ऊष्मा को रोकनें में कार्बन ड़ाइ आँक्साइड़ का योगदान 50% ,मिथेन का 18%,क्लोरोफ्लोरों कार्बन का 14%,तथा नाइट्रस आँक्साइड़ का 6% हैं.
पिछली शताब्दीयों से वाहनों, कल कारखानें और ताप आधारित विधुत संयत्रों वाला औघोगिकरण पश्चिम से लेकर पूर्व तक जिस तेजी से विस्तारित हुआ हैं.उसमें कार्बन ड़ाई आँक्साइड़ गैस उप - उत्पाद के रूप में निकल रही हैं,जिससे प्रथ्वी का वातावरण अत्यधिक गर्माता जा रहा हैं.
इसी प्रकार से यूरिया आधारित रासायनिक खेती से नाइट्रस आँक्साइड़ उप - उत्पाद के रूप में मुक्त हो रहा हैं.
जुगाली करनें वालें जानवरों,दलदली भूमियों और धान के खेतों से मिथेन मुक्त हो रही हैं.
रेफ्रीजरेट़रों,एयर कंड़ीशनरों से क्लोरोंफ्लोरों कार्बन मुक्त हो रही हैं.जबकि इन गैसों को सोखकर आँक्सीजन मुक्त करनें वालें पैड़ - पौधों की सँख्या लगातार घट़ रही हैं.
एक अध्ययन के अनुसार 18 वी शताब्दी से अब तक प्रथ्वी के तापमान में 1.7 डिग्री सेंटीग्रेड़ की बढ़ोतरी हो चुकी हैं.तापमान की इस मामूली सी बढ़ोतरी ने स्तनपायी जीवधारीयों के अस्तित्व के साथ प्रथ्वी के अस्तित्व को गंभीर चुनोंती प्रस्तुत कर दी हैं,उदाहरण के लियें ग्लेसियरों से बर्फ पिघलकर समुद्र के पानी का विस्तार कर रही हैं.जिससे कई द्धीपों और समुद्र तटीय शहर डुबनें का आसन्न संकट़ पैदा हो गया हैं.
एक अध्ययन में बताया गया कि प्रथ्वी का तापमान इस तरह से बढ़नें से पिछली शताब्दी से अब तक जीव - जंतुओं की पाँच हजार प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं,क्योंकि बढ़तें तापमान में ये प्रजातियाँ अपने आपको अनूकूलित नहीं कर पाई थी.
जानें मानें पर्यावरणविदों ने अध्ययन उपरांत यह स्पष्ट किया हैं,कि यदि कार्बन ड़ाई आँक्साइड़ का उत्सर्जन इसी रफ़्तार से चलता रहा तो सन् 2100 तक प्रथ्वी का तापमान 15°C बढ़ जायेगा.।
प्रथ्वी के तापमान में इतनी बढ़ोतरी का अर्थ हैं,आधी प्रथ्वी पर जल प्लावन जिसकी चपेट़ में समुद्र किनारें के शहर और द्धीप आकर व्यापक जनहानि को पैदा करेगें.
कहा जाता हैं,कि 17 वी शताब्दी में प्रथ्वी का 75% भाग घनें जंगलों से आच्छादित था.किन्तु आज प्रथ्वी पर मात्र 30% जंगल बचे हैं,जो लगातार कम होतें जा रहें हैं.जिस प्रकार से कार्बन ड़ाई आँक्साइड़ का उत्सर्जन प्रथ्वी पर बढ़ रहा हैं,उस हिसाब से कार्बन ड़ाई आँक्साइड़ का अवशोषण वृक्षों द्धारा नहीं हो पा रहा हैं.।
■ विटामिन डी के बारे में जानें
कार्बन ड़ाई आँक्साइड़ के अवशोषण के लियें व्यापक वृक्षारोपण अति आवश्यक हैं.
प्रथ्वी पर बढ़ता कार्बन ड़ाई आँक्साइड़ का संकेन्द्रण से आक्सीजन की मात्रा भी घट रही हैं,जो मनुष्य की प्राणवायु हैं,पहाड़ों पर आक्सीजन का स्तर तय लेवल से कम होनें का भी यही प्रमुख कारण हैं.
नेपाल में माँऊट़ एवरेस्ट पर पर्वतारोहीयों को कई सालों से मार्गदर्शन करनें वालें शेरपाओं का स्पष्ट रूप से मानना हैं,कि पिछलें कुछ दशकों में हिमालय पर आक्सीजन के स्तर में उल्लेखनीय कमी आई हैं.
कुछ दशकों पहलें ये लोग माँऊट़ एवरेस्ट की आधी दूरी बिना आँक्सीजन सिलेंड़र के तय कर लेतें थें,किन्तु अब शुरूआती चढ़ाई में ही आँक्सीजन सिलेंड़र की आवश्यकता महसूस की जाती हैं.
यही हाल अमरनाथ यात्रा का भी हैं.
रेफ्रीजरेशन,एयर कंड़ीशनर,तथा एल्यूमिनियम उघोगो से निकलनें वाली क्लोरोफ्लोरों कार्बन में कार्बन ड़ाई आँक्साइड़ के मुकाबले 800 गुना प्रथ्वी को गर्मानें की क्षमता होती हैं.इसमें मोजूद क्लोरिन गैस का एक अन्य घातक प्रभाव यह हैं,कि यह गैस प्रथ्वी को पराबैंगनी विकिरणों से बचानें वाली ओजोन परत को तोड़ देती हैं.
पराबैंगनी विकिरण यदि स्वस्थ मनुष्य की त्वचा के संपर्क में आती हैं,तो इससे त्वचा का कैंसर हो जाता हैं.
शिकागो विश्वविधालय के पर्यावरणविद डाँ.रामानाथन का मानना हैं,कि अब यदि प्रदूषणकारी गैस वायुमंड़ल में नही भी छोडी जायें तो वायुमंड़ल में इतनी अधिक विनाशकारी गैसें विधमान हैं,जो प्रथ्वी का तापमान 2030 तक 5° C तक बढ़ानें के लियें पर्याप्त हैं.यह बढ़ता तापमान अमेरिका समेत विश्व में लगातार तूफान लायेगा.
यदि ग्रीन हाऊस प्रभाव को कम करनें हेतू मानवीय चेतना भी इसी तरह सोई रही जैसें अभी विश्व के विभिन्न राष्ट्रों के मध्य सोई हुई हैं,तो भारतीय ग्रंथों में उल्लेखित प्रथ्वी पर जलप्लावन की भविष्यवाणी कलयुग के शुरूआत में ही चरितार्थ हो जावेगी.
विश्व ओजोन दिवस कब मनाया जाता हैं
ओजोन परत के संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने 16 सितंबर 1995 से विश्व ओजोन दिवस मनाना शुरू किया था। और तब से प्रतिवर्ष 16 सितंबर को " विश्व ओजोन दिवस" मनाया जाता हैं।
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