सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

कृषि वानिकी क्या हैं

#1.परिचय :::

कृषि वानिकी मृदा प्रबंधन की एक ऐसी पद्धति हैं,जिसके अन्तर्गत एक ही भूखण्ड़ पर कृषि फसलें एंव बहुउद्देश्यीय वृक्षों,झाड़ियों के उत्पादन के साथ - साथ पशुपालन व्यवसाय को लगातार संरक्षित किया जाता हैं और इससे भूमि की उपजाऊ शक्ति में वृद्धि का जा सकती हैं.

/////////////////////////////////////////////////////////////////////////

यह भी पढ़े 👇👇👇

प्रधानमन्त्री फसल बीमा योजना


/////////////////////////////////////////////////////////////////////////

#2.महत्व :::


• ईंधन और इमारती लकडी की आपूर्ति करना.

• कृषि उत्पादनों को सुनिश्चित करना एंव खाघान्न में वृद्धि.

• मृदा क्षरण पर नियंत्रण.

• भूमि में सुधार.

• बीहड़ भूमि का सुधार करना.

• फलों एंव सब्जियों कै उत्पादन बढ़ाना.

• जलवायु, पारिस्थितिकी एंव पर्यावरण सुरक्षा प्रदान करना.

• कुटीर उघोगों हेतू अधिक संसाधन एंव रोज़गार प्रदान करना.

• जलाऊ लकड़ी की आपूर्ति करके,गोबर का ईंधन के रूप में उपयोग करनें से रोकना और इसे खाद के रूप में उपयोग करना.

• कृषि यंत्रों हेतू लकड़ी उपलब्ध करना.

 # कृषि वानिकी की प्रचलित पद्धतियाँ :::


# 1.कृषि उघानिकी पद्धति :::

यह आर्थिक दृष्टि एंव पर्यावरण दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण एँव लाभकारी पद्धति हैं.इस पद्धति के अन्तर्गत शुष्क भूमि में अनार,अमरूद,बेर,किन्नू,कागजी निम्बू, मौंसम्बी,शरीफा, 6 - 6 मीटर की दूरी और आम,आवँला, जामुन, बेल को 8 - 10 मीटर की दूरी पर लगाकर उनके बीच में बैंगन, टमाटर,भिण्ड़ी,फूलगोभी,तोरई,लौकी,करेला,आदि सब्जियां और धनियाँ ,मिर्च,अदरक,हल्दी, जीरा,सौंफ,अजवाइन आदि मसालों की फसलें सुगमता से ली जा सकती हैं.

/////////////////////////////////////////////////////////////////////////

यह भी पढ़े 👇👇👇

जैविक कीट़नाशक बनानें की विधि

/////////////////////////////////////////////////////////////////////////



इससे कृषकों तो फल के साथ - साथ अन्य फसलों से भी उत्पादन मिल सकता हैं.जिससे कृषकों की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा.साथ ही फल वृक्षों की कांट़- छांट़ से जलाऊ लकड़ी और पत्तियों द्धारा चारा भी उपलब्ध हो जाता हैं.

#2.कृषि वन पद्धति :::


इस पद्धति में बहुउद्देश्यीय वृक्ष जैसे शीशम,सागौन,नीम,देशी बबूल,के साथ खाली स्थान में खरीफ सीजन में संकर ज्वार,संकर बाजरा,अरहर,मूंग,उड़द,लोबिया तथा रबी में गेँहू, चना,सरसों और अलसी की खेती की जा सकती हैं.

इस पद्धति के अपनानें से इमारती लकड़ी, जलाऊ लकड़ी, खाघान्न दालें व तिलहनों की प्राप्ति होती हैं.पशुओं को चारा भी उपलब्ध होता हैं.


#3.  उघान चारा पद्धति :::


असंचित एँव श्रमिक की कमी वालें क्षेत्रों लिये बहुत अच्छी पद्धति हैं.इस पद्धति में भूमि में कठोर प्रवृत्ति के वृक्ष जैसें बेर,बेल,अमरूद,जामुन,शरीफा,आँवला,इत्यादि लगाकर वृक्षों के बीच में घास जैसें अंजन,हाथी घास,मार्बल के साथ - साथ दलहनी चारे जैसें स्टाइलों,क्लाइटोरिया,इत्यादि लगातें हैं.
इस पद्धति में फल एँव घास भी प्राप्त होती हैं,  साथ ही भूमि की उर्वरता बढ़ती है,कार्बनिक पदार्थों से भूमि समृद्ध होती हैं,और जल संरक्षण भी होता हैं.


#4.वन - चारागाह पद्धति :::


इस पद्धति में बहुउद्देश्यीय वृक्ष जैसें - अगस्ती,खेजड़ी,सिरस,अरू,नीम,बकाइन आदि की पक्तिंयों के बीच में घास जैसे अंजन घास,मार्बल,स्टाइलो और क्लाइटोरिया उगाते हैं.इस पद्धति में पथरीली बंजर व अनुपयोगी भूमि से ईंधन,चारा,इमारती लकड़ी प्राप्त होती हैं.इसके अन्य लाभ हैं - भूमि की उर्वरा शक्ति में वृद्धि, भूमि एँव जल संरक्षण,तथा बंजर भूमि का सुधार आदि.


# 5.कृषि - वन - चारागाह :::


यह पद्धति भी बंजर भूमि के लिये उपयुक्त हैं.इसमें बहुउद्देश्यीय वृक्ष जैसें - सिरस,रामकाटी,केजुएरीना,बकाइन,शीशम,देशी बबूल इत्यादि के साथ खरीफ में तिल,मूँगफली,ग्वार,बाजरा,मूंग,उड़द,लोबिया और बीच - बीच में सूबबूल की झाडियाँ लगा देतें हैं,जिनसें चारा प्राप्त होता हैं,और जब बहुउद्देश्यीय वृक्ष बड़े हो जातें हैं,तो फसलों के स्थान पर वृक्षों के बीच में घास एंव दलहनी चारे वाली फसलों का मिश्रण लगातें हैं.

इस प्रकार इस पद्धति से चारा,ईंधन इमारती लकड़ी व खाघान्न की प्राप्ति होती हैं,और बंजर भूमि भी कृषि योग्य हो जाती है.


#6.कृषि - उघानिकी - चारागाह :::


इस पद्धति में आंवला, अमरूद,शरीफा,बेर के साथ-साथ घास एंव दलहनी फसलें जैसें - मूँगफली,मूंग,उड़द, लोबिया, ग्वार इत्यादि को उगाया जाता हैं.इस पद्धति से फल,चारा,दाल इत्यादि की प्राप्ति होती हैं,साथ ही भूमि की उर्वरा शक्ति में भी वृद्धि हो जाती हैं.


#7.कृषि - वन -उघानिकी :::


यह एक उपयोगी पद्धति हैं,क्योंकि इसमें विभिन्न प्रकार के बहुउद्देश्यीय वृक्ष उगतें हैं,और उनके बीच में उपलब्ध भूमि पर फल वृक्षों के साथ - साथ फसलें भी उगातें हैं.इस पद्धति से खाघान्न ,चारा,और फल भी प्राप्त होतें हैं.

#8.मेंड़ों पर वृक्षारोपण:::


मेड़ों पर यानि खेत के आसपास करोंदा,जामुन,नीम,सहजन,गुलर इत्यादि वृक्ष उगायें जा सकतें हैं,जिनसे अतिरिक्त उपज और इमारती लकड़ी प्राप्त कर आर्थिक लाभ प्राप्त हो सकता हैं.साथ ही भूमि संरक्षण होता हैं.

# 3.कृषि वानिकी के लाभ :::


• कृषि वानिकी को सुनिश्चित कर खाघान्न को बढ़ाया जा सकता हैं.

• बहुउद्देश्यीय वृक्षों से ईंधन,चारा व फलियाँ,इमारती लकड़ी ,रेशा,गेंदा,खाद,आदि प्राप्त होतें हैं.

• कृषि वानिकी के द्धारा भूमि कटाव की रोकथाम की जा सकती हैं और भू एंव जस संरक्षण कर मृदा की उर्वरा शक्ति में वृद्धि कर सकतें हैं.

• कृषि एँव पशुपालन आधारित कुटीर एंव मध्यम उघोगों को बढ़ावा मिलता हैं.

• इस पद्धति के द्धारा ईंधन की पूर्ति करके 500 करोड़ मीट्रिक टन गोबर का उपयोग जैविक खाद के रूप में किया जा सकता हैं.

• वर्ष भर गाँवों में कार्य उपलब्धता होनें के कारण शहरों की ओर युवाओं का पलायन रोका जा सकता हैं.

• पर्यावरण एँव पारिस्थितिकी संतुलन बनाये रखनें में इस पद्धति का महत्वपूर्ण योगदान हैं.
• कृषि वानिकी में जोखिम कम हैं,सूखा पड़नें पर भी आर्थिक लाभ प्राप्त होता रहता हैं.

• कृषि वानिकी पद्धति से मृदा तापमान विशेषकर ग्रीष्म रितु में बढ़नें से रोका जा सकता हैं,जिससे मृदा के अँदर पाये जानें वालें लाभकारी सूक्ष्म जीवाणुओं को नष्ट होनें से बचाया जा सकता हैं.

• बेकार पड़ी बंजर,ऊसर,बीहड़ भूमि पर घास बहुउद्देश्यीय वृक्ष लगाकर इन भूमियों को उपयोग में लाया जा सकता हैं.

कृषि वानिकी समय और परिस्थितियों की माँग हैं,अत: कृषकों के लिये इसे अपनाना आवश्यक हैं.






टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

होम्योपैथिक बायोकाम्बिनेशन नम्बर #1 से नम्बर #28 तक Homeopathic bio combination in hindi

  1.बायो काम्बिनेशन नम्बर 1 एनिमिया के लिये होम्योपैथिक बायोकाम्बिनेशन नम्बर 1 का उपयोग रक्ताल्पता या एनिमिया को दूर करनें के लियें किया जाता हैं । रक्ताल्पता या एनिमिया शरीर की एक ऐसी अवस्था हैं जिसमें रक्त में हिमोग्लोबिन की सघनता कम हो जाती हैं । हिमोग्लोबिन की कमी होनें से रक्त में आक्सीजन कम परिवहन हो पाता हैं ।  W.H.O.के अनुसार यदि पुरूष में 13 gm/100 ML ,और स्त्री में 12 gm/100ML से कम हिमोग्लोबिन रक्त में हैं तो इसका मतलब हैं कि व्यक्ति एनिमिक या रक्ताल्पता से ग्रसित हैं । एनिमिया के लक्षण ::: 1.शरीर में थकान 2.काम करतें समय साँस लेनें में परेशानी होना 3.चक्कर  आना  4.सिरदर्द 5. हाथों की हथेली और चेहरा पीला होना 6.ह्रदय की असामान्य धड़कन 7.ankle पर सूजन आना 8. अधिक उम्र के लोगों में ह्रदय शूल होना 9.किसी चोंट या बीमारी के कारण शरीर से अधिक रक्त निकलना बायोकाम्बिनेशन नम्बर  1 के मुख्य घटक ० केल्केरिया फास्फोरिका 3x ० फेंरम फास्फोरिकम 3x ० नेट्रम म्यूरिटिकम 6x

PATANJALI BPGRIT VS DIVYA MUKTA VATI EXTRA POWER

PATANJALI BPGRIT VS DIVYA MUKTA VATI EXTRA POWER  पतंजलि आयुर्वेद ने high blood pressure की नई गोली BPGRIT निकाली हैं। इसके पहले पतंजलि आयुर्वेद ने उच्च रक्तचाप के लिए Divya Mukta Vati निकाली थी। अब सवाल उठता हैं कि पतंजलि आयुर्वेद को मुक्ता वटी के अलावा बीपी ग्रिट निकालने की क्या आवश्यकता बढ़ी। तो आईए जानतें हैं BPGRIT VS DIVYA MUKTA VATI EXTRA POWER के बारें में कुछ महत्वपूर्ण बातें BPGRIT INGREDIENTS 1.अर्जुन छाल चूर्ण ( Terminalia Arjuna ) 150 मिलीग्राम 2.अनारदाना ( Punica granatum ) 100 मिलीग्राम 3.गोखरु ( Tribulus Terrestris  ) 100 मिलीग्राम 4.लहसुन ( Allium sativam ) 100  मिलीग्राम 5.दालचीनी (Cinnamon zeylanicun) 50 मिलीग्राम 6.शुद्ध  गुग्गुल ( Commiphora mukul )  7.गोंद रेजिन 10 मिलीग्राम 8.बबूल‌ गोंद 8 मिलीग्राम 9.टेल्कम (Hydrated Magnesium silicate) 8 मिलीग्राम 10. Microcrystlline cellulose 16 मिलीग्राम 11. Sodium carboxmethyle cellulose 8 मिलीग्राम DIVYA MUKTA VATI EXTRA POWER INGREDIENTS 1.गजवा  ( Onosma Bracteatum) 2.ब्राम्ही ( Bacopa monnieri) 3.शंखपुष्पी (Convolvulus pl

जीवनसाथी के साथ नंगा सोना चाहिए या नही।Nange sone ke fayde

  जीवनसाथी के साथ नंगा सोना चाहिए या नही nange sone ke fayde इंटरनेट पर जानी मानी विदेशी health website जीवन-साथी के साथ नंगा सोने के फायदे बता रही है लेकिन क्या भारतीय मौसम और आयुर्वेद मतानुसार मनुष्य की प्रकृति के हिसाब से जीवनसाथी के साथ नंगा सोना फायदा पहुंचाता है आइए जानें विस्तार से 1.सेक्स करने के बाद नंगा सोने से नींद अच्छी आती हैं यह बात सही है कि सेक्सुअल इंटरकोर्स के बाद जब हम पार्टनर के साथ नंगा सोते हैं तो हमारा रक्तचाप कम हो जाता हैं,ह्रदय की धड़कन थोड़ी सी थीमी हो जाती हैं और शरीर का तापमान कम हो जाता है जिससे बहुत जल्दी नींद आ जाती है।  भारतीय मौसम और व्यक्ति की प्रकृति के दृष्टिकोण से देखें तो ठंड और बसंत में यदि कफ प्रकृति का व्यक्ति अपने पार्टनर के साथ नंगा होकर सोएगा तो उसे सोने के दो तीन घंटे बाद ठंड लग सकती हैं ।  शरीर का तापमान कम होने से हाथ पांव में दर्द और सर्दी खांसी और बुखार आ सकता हैं । अतः कफ प्रकृति के व्यक्ति को सेक्सुअल इंटरकोर्स के एक से दो घंटे बाद तक ही नंगा सोना चाहिए। वात प्रकृति के व्यक्ति को गर्मी और बसंत में पार्टनर के साथ नंगा होकर सोने में कोई