कीट़ प्रभावित फसल |
#१. आर्गेनिक कीट़नाशक बनानें की विधि --::
(ब).एक माह पश्चात इसे निकाल लें
#२.फसलों पर छिड़काव की विधि--::
(ब).यह प्रक्रिया पन्द्रह - पन्द्रह दिनों के अन्तराल से दो बार दोहरावें.
३.उपरोक्त विधि के अनुसार कीट़नाशक छींटनें से इल्लीयां नष्ट हो जाती हैं.
३.उपरोक्त विधि एक बीघा फसल के लिये हैं.
४.यदि फसल में फूल नहीं बन रहे हो तो गोमूत्र में गन्ने का रस मिलाकर छिड़काव करें.
५.अच्छी उपज़ के लिये हर दो सालों में ज़मीन में गोबर खाद अवश्य डा़ले।
बायोगैस स्लरी :-
बायोगैस संयंत्र में पाचन क्रिया के बाद 25 प्रतिशत ठोस पदार्थ का रूपांतर गैस के रुप में होता है और 75 प्रतिशत ठोस पदार्थ के रुप में होता है। 2 घन मीटर के गैस संयंत्र, जिसमें प्रतिदिन लगभग 50 किलो गोबर डाला जाता है से 80 प्रतिशत नमीयुक्त करीब 10 टन बायोगैस स्लरी का खाद प्रतिवर्श प्राप्त होती है।
खेती के लिये यह अति उत्तम खाद होता है। इसमें नत्रजन 1.5-2.0 प्रतिशत, स्फुर 1.0 प्रतिशत एवं पोटाश 1. 0 प्रतिशत तक होता है। बायोगैस संयंत्र से जब स्लरी के रुप में खाद बाहर आता है तब जितना नत्रजन गोवर में होता है उतना ही नत्रजन स्लरी में भी होता है। संयंत्र में पाचन क्रिया के दौरान कार्बन का रूपांतरण गैस में हो जाता है।
कार्बन का प्रमाण कम होने पर कार्बन-नत्रजन का अनुपात कम हो जाता है जिसके परिणामस्वरुप नत्रजन का प्रमाण बढ़ा हुआ प्रतीत होता है। बायोगैस संयंत्र से निकली पतली स्लरी में 20 प्रतिशत नत्रजन अमोनिकल नाईट्रेट के रुप में होती है। अतः इसका उपयोग तुरंत खेत में नालियां बनाकर अथवा सिंचाई जल के साथ मिलाकर खेत में किया जाये तो इसका लाभ रासायनिक खाद की तरह फसल को तुरंत होता है एवं उत्पादन में 10 से 20 प्रतिशत तक की वृद्धि हो सकती है।
स्लरी खाद का उपयोग सुखाने से नाईट्रोजन का कुछ भाग हवा में उड़कर नष्ट हो जाता है। स्लरी खाद का उपयोग असिंचित खेती में 5 टन प्रति हेक्टर एवं सिंचित खेती में 10 टन प्रति हेक्टेयर की दर से किया जा सकता है । बायोगैस खाद में मुख्य पोशक तत्वों के अतिरिक्त सूक्ष्म पोशक तत्व एवं ह्यूमस भी होता है, जिससे की मृदा भौतिक दशा में सुधार के साथ-साथ जल धारण क्षमता एवं सूक्ष्म लाभकारी जीवाणुओं में वृद्धि होती है।
भभूत अमृत पानी :-
फसलें खरीफ में सोयाबीन, ज्वार, मक्का, मूंगफली, कपास, मूंग, उडद आदि रवी में गेहूँ, चना, मटर, गन्ना आदि।
बौवनी के पूर्व खेत में बड़ के पेड़ के नीचे की 15-20 किग्रा नमी युक्त मिट्टी ( भभूत) प्रति एकड छिड़क कर बिखेरें । देशी गाय के 10 किग्रा ताजे गोबर में देशी गाय के ही दूध से बना नोनीय घी 250 ग्राम अच्छी तरह फेटें, तत्पश्चात उसमें 500 ग्राम शहद मिलाकर फटें। इस मिश्रण में से आधा किग्रा मिट्टी अच्छी तरह मिला लें।
अब इस एक किग्रा के मिश्रण को पतला कर बोये जाने वाले बीज पर छिड़ककर अच्छी तरह से संस्कारित करें जिससे बीज पर मिश्रण की हल्की सी परत चढ़ जाये। उसे छाया में सुखाकर बोनी करें। बोवनी के बाद अमृत पानी छिड़काव करना है जो इस प्रकार करें।
बीज संस्कार के बाद बचा 10 किलो राबडा दो सौ लीटर पानी में घोलकर एक एकड खेत में छिडके। रबी के मौसम में भभूत (बड के नीचे की मिट्टी) खेत तैयार करते समय भुरक कर अच्छी तरह मिला दें और अमृत पानी या तो बोवनी के पूर्व की सिंचाई के साथ या बोवनी के बाद की प्रथम सिंचाई के साथ दें।
किसी प्रकार के रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक, खरपतवार नाशक का उपयोग नहीं करें। फसल सुरक्षा के लिये जैविक विधि से रोग एवं कीट का नियंत्रण करें। खरपतवार नियंत्रण के लिये हाथ से निंदाई करें तथा निंदा (खरपतवार) उखाडकर वही खेत में विछा देवें । कतारों के बीच पुराना खराब हुआ बग्दा, खेत में आस-पास उगने वाली झाडियों की पत्तियां, सागवान, लँटना (जर्मनी), पलाश, कडुआ नीम, अयपोमिया, आंकडा आदि की पत्तियां बिछा दें। यह पलवार खरपतवार नियंत्रण करेगी और नमी संधारण करेगी। अधिक वर्षा से फसल सुरक्षा होगी।
अमृत संजीवनी :-
एक एकड़ या 0.4 हेक्टेयर क्षेत्र के लिये अमृत संजीवनी इस प्रकार तैयार करें। मोबिल ऑयल की खाली 200 लीटर पानी वाली ढक्कनदार कोठी लेवें, जिसमें दो रिंग से तीन समान भाग होतें है। इस ड्रम में देशी गाय, बैल बछडे, बछिया का ताजा 60 किलो गोबर डालें, जिसमें दो रिंग तक अर्थात 2/3 भाग पर जावेगा। गौबर तौलने कीआवश्यकता नहीं है, यह प्रमाण सही है।
इस गोबर पर तीन किग्रा यूरिया, तीन किग्रा सिंगल सुपर फास्फेट तथा एक किला म्यूरेट ऑफ पोटाश कुल 7 किग्रा रासायनिक उर्वरक तथा दो किलो मूंगफली की खली डालें।
अब इस टंकी में पानी भर दे मात्र ऊपर के किनारो तीन इंच खाली रखें। सम्पूर्ण मिश्रण को लकड़ी से अच्छी तरह चला दे और ढक्कन बंदकर के 48 घंटे यानी दो दिन रखें। तत्पश्चात् तत्काल फसल में दें। 48 घंटे में उपयोगी सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या में अत्याधिक वृद्धि होती है।
उपयोग विधि :-
• अपने खेत में एक एकड़ में कितनी फसल कतारें है यह गिने । हर कतार में यह दो सौ लीटर का मिश्रण समान रुप से दिया जाना हैं अतः 200 लीटर को कतारों की संख्या में भाग देवें। माना कि हमारा खेत 218 फीट X 200 फीट का है और हमने एक फीट के अंतर से 200 कतारें 218 फीट लंबी बोयी है।
तब प्रति कतार हमें 200/200 = एक लीटर अमृत संजीवनी का मिश्रण देना है। हम देखतें है कि 15 लीटर स्प्रे पंप की नोजल निकाल कर उसमें पानी भर की 218 फीट जाकर और 218 फीट वापस आकर कुल दो कतारों में 15 लीटर पानी समान रुप से छिडक सकतें है। तब स्प्रे पंप से पहले दो राबडा मिश्रण डालकर शेस पानी मिलाकर टंकी भर लें।
मिश्रण हाथ से मसलकर महीन कर लेना चाहिए। कोई गुठली न रह जाए। टंकी पर जाल या छलनी रखकर 24 लीटर राबडी • अच्छी तरह छान लेवें और उसमें पानी भरकर अच्छी तरह मिला दें। अब इस मिश्रण से 12 बार स्प्रे पंप भरे जा सकतें है। अर्थात 12+12=24 कतारों में आसानी से समान रूप से मिश्रण छिड़का जा सकेगा।
जितनी कतारें स्प्रे पंप से आसानी से छिडक सकतें है, उसी अनुपात में मिश्रण पंप में डालना होगा। अतः प्रथम एक या दो बार खाली पानी छिड़ककर कतारें निर्धारित कर लेवें ।
पहले छिडकाव के 7 दिन बाद फसल में बदलाव दिखने लगेगा। सोयाबीन, ज्वार, मक्का, मुंगफली, मूंग, गेंहू, चना फसलों में 3-4 खुराक इसी प्रकार देनी होगी। मिर्च कपास की फसल 5-6 डोज, हरी पत्तियों की सब्जियों में 2-3 तथा गन्ना फसल में प्रति सप्ताह एक डोज देने पर लगभग 30-32 खुराक देनी पडती है।
मिर्च :-
मिर्च भी कीट के लिये कीटनाशी के रुप में इस्तेमाल की जा सकती है। एफिड एवं अन्य कीटों से फसल के बचाव के लिये उपयुक्त विकल्प है। 100 ग्राम मिर्च को पीसकर 5 लीटर जल में घोल तैयार करके एक चम्मच साबुन या सर्फ मिलाकर प्रभावित पौधों पर छिडकाव करने से हानिकारक कीटों से छुटकारा मिल सकता है।
तम्बाकू
तम्बाकू में निकोटीन पाया जाता है अतः तम्बाक को पानी में घोलकर छिडकाव करने से बीटल माहो, लीफ माइनर आदि कोटों का प्रकोप कम हो जाता है। 750 ग्राम तम्बाकू की सूखी पत्तियां लेकर 7 लीटर पानी में उबालकर पूरे मिश्रण को रातभर छोड देते है, उसके बाद सुबह फसल पर छिड़काव कर सकते हैं।
तम्बाकू चूर्ण
:- बारीक पिसा हुआ तम्बाकू का चूर्ण पानी में घोलकर एफिडस को मारने के लिये उपयोग किया जाता है इससे पत्तियों को नुकसान नहीं पहुंचता है। वास्तव में निकोटीन एक एल्कोलाईड होता है जो तम्बाकू की पत्तियों से निकाला जाता है।
तम्बाकू का काढ़ा :-
यह एक किलो तम्बाकू की पत्तियों को दस लीटर पानी में आधे घंटे तक उबालकर या एक दिन तक ठंडे पानी में भिगोकर बनाया जाता है। इसके बाद इसे छानकर इससे तीस लीटर पानी मिलाकर छिडकाव किया जाता है। इसमें थ्रिप्स एवं एफिडस का नियंत्रण होता है।
14 ग्राम साबुन, 4.5 लीटर पानी में घोलकर उक्त विधि से बना काढा इसमें मिलाकर छिडकाव किया जाये तो गीलापन, फैलाव एवं कीटो को मारने की शक्ति बढ़ाता है। यह एफिडस, साईलिडस, पत्ती छेदक जेसिडस के नियंत्रण में उपरोक्त घोल से ज्यादा प्रभावशाली होता है। तम्बाकू डस्ट :- तम्बाकू की पत्तियों का गाडा निकोटिन सत को जिप्सम और सल्फर में मिलाकर डस्ट बनाकर भुरकाव करें तो पत्ती खाने बाले व्हाईट ग्रन्स का नियंत्रण होता है और कुछ सीमा तक दीमक का नियंत्रण होता है।
तम्बाकू का चूने के साथ घोल बनाना :-
एक किलो तम्बाकू + दो प्रतिशत चूने का गर्म पानी एक दिन के लिये रखकर, इसको छानकर फिर इसमें एक सौ लीटर पानी मिलाकर छिडकाव किया जावे तो सफेद मक्खी एवं दूसरे नर्म शरीर बाले कीटों का नियंत्रण होता है।
राख :-
गांव में अधिकांशतः खाना चूल्हों पर लकडी आदि जलाकर पकाया जाता है इन उपले और लकडी के जलने के बाद राख ही बचती है। घर की महिलायें इस राख को खाद के ढेर पर डाल देती है तथा गृह वाटिका में उगाई गई फसलों पर छिडक देती है। इनके छिडकाव से माहु नामक कीट का नियंत्रण होता है।
सीताफल
इस फल के बीजों में एसिटोजेसिस नामक पदार्थ पाया जाता है। जिसमें कीटनाशक गुण होते है।
हैदराबाद के निकट अंतराष्ट्रीय आंशिक उष्ण कटिबंध क्षेत्रीय फसल शोध संस्थान द्वारा किये गये एक अध्ययन के अनुसार इसके बीज इण्डोसल्फान नामक रासायनिक कीटनाशक जितने भी प्रभावी पाये गये।
परंपरागत कृषि में किसान इसके बीज के तेल का प्रयोग अनेक हानिकारक कीटों के विरुद्ध करते थे। इसके और नीम के तेल को मिलाकर प्रयोग करने से अच्छे परिणाम सामने आये है ।
प्याज :-
प्याज का प्रयोग गेंहूँ को सुरक्षित रखने के लिये गांवों में छोटे कृषक करते है। एक क्विंटल गेहूँ के बोरे में प्याज को काटकर आनाज के बीच में रख देते है।
इससे अनाज सुरक्षित पडा रहता है। प्याज में चरपराहट एक प्रकार के उड़ने वाला तेल एलाइन प्रोफाईन डाइसल्फाईड के कारण होती है। प्याज के बाहरी छिलके में कुछ पीले रंग का पदार्थ कुबेरसोटीन पाया जाता है जिसके प्रयोग दवाओं के निर्माण में किया जाता है।
नीम
• नीम के सार में निम्न गुण होते है :-
1. कीटों का प्रतिकारक या रोधक
2. खाने में अयोग्य
3. कीटों में वृद्धि को रोकने में प्रभावी 4. अनेक अन्य कीटों के विरुद्ध कीटनाशक प्रभाव रखता है ।
नीम बीज पावडर :-
नीम बीज के 9 ग्राम पावडर 9 लीटर पानी में मिलाकर 0.1 प्रतिशत सान्द्रता का अवलम्बन बनाया जाता है। इसका छिडकाव करने से यह टिड्डी आर्मी वर्म, पत्ती खाने वाले कीटों को रुकावट डालता है अर्थात् कीटों को पौधे से दूर रखता है।
अनाज भंडारण में निम्बोली पाउडर का उपयोग :-
नीम बीज की निम्बोली पावडर को 1.2 किलो यदि 100किलो गेहूँ बीज में मिलाये जावे तो यह चावल की सूण्डी से 9 माह, राइजोपरथा से 10 माह एवं ट्रोनगोमेमा कीट से 12 माह तक सुरक्षा प्रदान करता है।
1.2 किलो कुचले हुये नीम बीज को यदि मूंग, चना, चवला
के 100 किलो बीज में मिलाया जाये तो यह क्रमशः 8, 9, 12 महीने के लिये पल्स बीटल से सुरक्षा प्रदान करता है। नीम की खली सार 5 लीटर पानी में 1 किलो नीम की खली को 1 सप्ताह के लिये डुबाया जाये। (समय-समय पर घोल को हिलाया जावे) फिर इसको कपडे से छानकर 10 लीटर पानी में पतला करके छिडकाव करने से नींबू के लीफ माईनर एवं पत्ती भक्षक कीडों को नियंत्रित करता है |
नीम तेल एवं साबुन का इमल्सन :-
12 लीटर पानी + 3 चम्मच कपडे धोने का सोडा का मिश्रण बनाकर इसमें
3 चाय के चम्मच भर के नीम का तेल बूंद-बूंद मिला कर छिडकाव करने से सफेद मक्खी, जेसिड के अंडे माहू (एफिडस) बग्स का नियंत्रण किया जाता है।
2,4,6 और 10 प्रतिशत सूखी हुई नीम की पत्तियों को यदि गेंहूँ, ज्वार के दानों में मिलाया जावे तो यह सभी प्रकार के संग्रहित अनाज के कीटों से 135 दिन तक सुरक्षा करती है ।
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